Sunday, October 25, 2009

चीनी चिकल्लश

आज एक चीज ने सारी जनता को परेशां किया हुआ है नाम दोनों का एक ही है लेकिन दोनों मै बहुत अन्तर है पर दोनों का काम एक ही है बिना किसी भेद भावः के हर नागरिक को परेशान करना ।
पर धयान से सोचा जाए तो दोनों को हम ने ही इतना बडाबा दिया है की आज दोनों ही हमारे बस से बहार जा चुकी है अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे की हम किन की बात कर रहे है जी हाँ हम बात कर रहे है जिन चीजों की उनमे से पहली चीज है चीनी और दूसरी है चीन।
जी हाँ आज एक तरफ़ जहाँ महंगाई के कारण जहाँ चीनी लोगों से दूर भागती जा रही वही हमारा पड़ोसी देश चीन लगातार हमारे पास आना चाह रहा है मेरा मतलब है इतना पास की हमारी सीमा को ही आपना बताने में उसे कोई संकोच नही ।
बात चाहे चीन की हो या चीनी की आज दोनों ही बेलगाम हो चुके है दोनों पर अब हमारा बस नही जिसकी सारी जिम्मेदारी हमारी सरकार की आदुर्दार्शिता का नतीजा है एक तरफ़ मुनाफा खोरों ने जहाँ चीनी को आपने फायदे के लिए गोदामों में दवा कर रखे हुए है वही सरकार की कार्यवाही नाकाफी है उसी प्रकार हमारे पड़ोसी के द्वारा लगातार की जाने वाली गुस्ताखियों के बाद भी हम पता नही किस बात के इन्तजार में है ।
जल्द ही दोनों का इंतजाम नही किया गया तो वह दिन दूर नही जब जख्म नासूर बन हमेशा के लिए देश को शलता रहेगा । और हम शान्ति का शंदेश सारी दुनिया को सुनते हुए चीनी की मांग करते रहेंगे .

Saturday, October 24, 2009

भा जा पा कल आज और कल

मातृ दो शीट से शुरुआत करने वाली पार्टी एक दिन देशकी दूसरी बड़ी पार्टी बन जाएगी ये बात शायद उस समय ख़ुद पार्टी के मुखिया को भी न आया रहा होगा तो सरकार चलने की बात तो उस समय सोचना भी बेमानी था .लेकिन नेक इरादों के साथ किया गया काम देर से ही सही हर किसी को पसंद आता है जब तक की वह लोभ और स्वार्थ से दूर रहे .खेर अटल जी के नेतृत्व मे पार्टी ने कई ऊँचाइयों को छुआ और देश पर राज भी किया लेकिन यहाँ से सुरु हुआ पार्टी के पतन का सफर जिसके लिए पार्टी के दूसरी श्रेणी के नेताओं का ही दोष है आज पार्टी का हर नेता पार्टी को छोर ख़ुद के ही बारे मे ही सोच रहा है पार्टी कहाँ जा रही है किसी को क्या म.प्र और छग.की बात छोर दे तो पार्टी आज हर जगह पिचारती जा रही है ये अलग बात है की और भी प्रदेश मे उसकी सरकार हो लेकीन चुनाव को सामना करने मे पार्टी हर जगह पिछारती जाती है .जिसके जिम्मेदार है उसके अपने ही नेता जो चल चरित्र और आनुशासन की बाब तो हमेशा करते है लेकिन कभी भी उनका अनुशरण नहीं करते आज पार्टी का हर नेता अपने आप को पार्टी से बड़ा समझता है कोई भी एसा नहीं जो अपने आप से समय निकल कर पार्टी के बारे में सोचे सभी नेते अपनी आपस की ही लारी में उल्घे हुए है ।
हाल मै हुए मुंबई और हरियाणा चुनाव के बाद आये नतीजो के बाद तो अब पार्टी के नेताओ को आपनी सोच बदलनी होगी नहीं तो पार्टी इतिहास के गर्त मै ऐसी खो जाएगी की जहाँ से उसे फिर से इस्थापित होने का मोका शायद ही मिले.

Tuesday, July 28, 2009

गे हो !

'बस यही अपराध में हर बार करता हूँ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ !' शदी के महान गायक मुकेश माथुर ने जब इस मशहूर गीत को आपनी आवाज से नवाजा था तब उन्होंने शायद ही सोचा रहा होगा की काफी शालों यह गीत फ़िर लोकप्रिय होगा गीत वही है लेकिन आज गीत के माने बदल गए है जब से है कोर्ट का फेसला आया है एक तरफ़ जहा इस फेसले के बाद नाज फौन्डेशन के सदस्यों के चेहरे खुशी से खिल गए है वही इस फेसले के विरोध मै भी काफी सरे लोगों भी है जो यह नही चाहते की हमारे समाज मै जहाँ आज भी सेक्स एजुकेशन को लागु किया जाय या नही इस पर सहमती नही बन पा रही है तो क्या ऐसे आप्रक्रतिक संबंधों को मान्यता मिलनी चाहिए जो की सर्वथा आमनुसिक है ।
नाज फौन्डेशन के सदस्यों का कहना है की हम को भी अपने हिशाब से जीने की आजादी होनी चाहिए तो हम पूछते है की आपका जीना क्या शिर्फ़ सेक्स के लिए ही है ।
प्रकृति ने आपनी रचना मै नर और मादा दो लिंग की रचना की है जो काफी सोच समाज कर की है तो क्या हम नर और नर या मादा मादा के मिलन की केसे कल्पना कर सकते है तथा इसका नजीता भी सोचे की शिवा बीमारी के और क्या निकलता है .मनुष्यों को इस धरती पर सबसे समझदार समझा जाता है क्योंकि उसके पास दिमाग होता है और इस दिमाग का ज्ञान का क्या शिर्फ़ यही उपयोग रह गया है की हम ऐसे रिश्तों का ईजाद करें जो जानवर भी नही अपनाते ।
खेर खुशी की बात ये भी की एक बड़ी जमात इसके किलफ़ इसलिए है की न तो हमारी धार्मिक,सामाजिक और पौराणिक मान्यताएं भी किसी कीमत पर ऐसे रिश्तों को स्वीकार नही कर सकती।
हम आज विकाशशील से विकशित हो रहे है आज हमरे रहन सहन का ढंग बदल गया है याने सीधे शब्दों मै कहें तो हम पश्चिमी संस्करण मै ढलते जा रहे है .विकाश होना अच्छी बात है लेकिन विकाश के नाम पर नैतिक पतन कैसे बर्दाश्त हो।

Monday, July 27, 2009

सच का सामना

'सच का सामना 'आज इस प्रोग्राम ने सभी को बहश का मुद्दा दे दिया है और वो अपने धेय पर सफल भी हो गया है उसे तो यही चाहिए था .बात अब सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंच गई है नेता भी गरम तबे पर अपनी रोटी सेक रहे है और क्यों न सेके देश मै मुद्दों का अकाल जो हो गया है किसी को क्या लेना की महगाई के कारन गरीब के घर में घास की रोटी खाने को लोग मजबूर है ये बात सिर्फ़ टीकमगढ़ की नही कामो बेस सारे देश का यही हाल है लेकिन इस सच का सामना कोई करे भी तो क्यों बात रोजगार गारेंटी योजना की करते है जिसके दम पर मनमोहन फ़िर सत्ता पर काबिज़ हो गए लेकिन राजीव गाँधी के उस कथन को झुठला दिया की जनता के पास सिर्फ़ १० पैसे पहुँचता है सच तो ये है की परसेंटेज के खेल मै जनता तक सिर्फ़ वादे ही पहुँच पाते है .क्या उन नेताओं मै ये हिम्मत है की वो बता सके की हम केसे जीत कर आए हमने जीत के लिए कितना खर्च किया और वो पैसा कहाँ से आया
छोरिये एस सच का सामना कोई नही करना चाहेगा .अपने मुद्दे पर लोटते है की सच का सामना वास्तव मै सच के लिए किया जा रहा है या उस जीत की राशिः के लिए .यदि पैसों के लिए नही है तो क्या सच के लिए आज हम लोगों को एक टी.वी .प्रोग्राम की आवश्कता है .हम किन लोगों को आपना सच बताना चाह रहे है जो टी आर पी के लिए हामरे समाज मै पश्चीमी सव्यता का नंगा रूप लाकर हमे ये सिखा रहे है की हम जहाँ रहते है वह गाय को भी माता का दर्जा दिया जाता है .हम ये क्यों भूल जाते है की गाँधी जी कहा था की अकेले मै बेठकर किया गया पश्चाताप भी एक सच है और हमे सच बोलना ही है तो हम सीधे ही बोल सकते है माध्यम की क्या जरूरत .सवाल मिडिया पर भी उठने लगा है क्या प्रेश की आजादी पर फ़िर विचार करने की जरुरत है हम चोथे स्तम्भ पर पावंदी के पक्छ मै नै लेकिन मिडिया को भी अपनी भूमिका को तय करना होगा .कुछ सच ऐसेहोते है जो सामने न आने पर ही अच्छे लगते है क्या koee yah चाहेगा की कुछ कीमत पर यह पता चल जाए की उसकी बीबी का किसी से ............था और पता चल भी जाएगा तो कभी उस वो भरोसा कर पाएगा .प्रोग्राम तो जितना विवादाश्पद होगा उसे उतने ही लोग देखेंगे क्योंकि इन्शानी फितरत है दूसरों की जिन्दगी में झाकना और यही चेनल की सफलता है वो जायदा विज़ापन ला सकेगा और हम आप को नंगा कर सकेगा.