Tuesday, July 28, 2009

गे हो !

'बस यही अपराध में हर बार करता हूँ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ !' शदी के महान गायक मुकेश माथुर ने जब इस मशहूर गीत को आपनी आवाज से नवाजा था तब उन्होंने शायद ही सोचा रहा होगा की काफी शालों यह गीत फ़िर लोकप्रिय होगा गीत वही है लेकिन आज गीत के माने बदल गए है जब से है कोर्ट का फेसला आया है एक तरफ़ जहा इस फेसले के बाद नाज फौन्डेशन के सदस्यों के चेहरे खुशी से खिल गए है वही इस फेसले के विरोध मै भी काफी सरे लोगों भी है जो यह नही चाहते की हमारे समाज मै जहाँ आज भी सेक्स एजुकेशन को लागु किया जाय या नही इस पर सहमती नही बन पा रही है तो क्या ऐसे आप्रक्रतिक संबंधों को मान्यता मिलनी चाहिए जो की सर्वथा आमनुसिक है ।
नाज फौन्डेशन के सदस्यों का कहना है की हम को भी अपने हिशाब से जीने की आजादी होनी चाहिए तो हम पूछते है की आपका जीना क्या शिर्फ़ सेक्स के लिए ही है ।
प्रकृति ने आपनी रचना मै नर और मादा दो लिंग की रचना की है जो काफी सोच समाज कर की है तो क्या हम नर और नर या मादा मादा के मिलन की केसे कल्पना कर सकते है तथा इसका नजीता भी सोचे की शिवा बीमारी के और क्या निकलता है .मनुष्यों को इस धरती पर सबसे समझदार समझा जाता है क्योंकि उसके पास दिमाग होता है और इस दिमाग का ज्ञान का क्या शिर्फ़ यही उपयोग रह गया है की हम ऐसे रिश्तों का ईजाद करें जो जानवर भी नही अपनाते ।
खेर खुशी की बात ये भी की एक बड़ी जमात इसके किलफ़ इसलिए है की न तो हमारी धार्मिक,सामाजिक और पौराणिक मान्यताएं भी किसी कीमत पर ऐसे रिश्तों को स्वीकार नही कर सकती।
हम आज विकाशशील से विकशित हो रहे है आज हमरे रहन सहन का ढंग बदल गया है याने सीधे शब्दों मै कहें तो हम पश्चिमी संस्करण मै ढलते जा रहे है .विकाश होना अच्छी बात है लेकिन विकाश के नाम पर नैतिक पतन कैसे बर्दाश्त हो।

Monday, July 27, 2009

सच का सामना

'सच का सामना 'आज इस प्रोग्राम ने सभी को बहश का मुद्दा दे दिया है और वो अपने धेय पर सफल भी हो गया है उसे तो यही चाहिए था .बात अब सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंच गई है नेता भी गरम तबे पर अपनी रोटी सेक रहे है और क्यों न सेके देश मै मुद्दों का अकाल जो हो गया है किसी को क्या लेना की महगाई के कारन गरीब के घर में घास की रोटी खाने को लोग मजबूर है ये बात सिर्फ़ टीकमगढ़ की नही कामो बेस सारे देश का यही हाल है लेकिन इस सच का सामना कोई करे भी तो क्यों बात रोजगार गारेंटी योजना की करते है जिसके दम पर मनमोहन फ़िर सत्ता पर काबिज़ हो गए लेकिन राजीव गाँधी के उस कथन को झुठला दिया की जनता के पास सिर्फ़ १० पैसे पहुँचता है सच तो ये है की परसेंटेज के खेल मै जनता तक सिर्फ़ वादे ही पहुँच पाते है .क्या उन नेताओं मै ये हिम्मत है की वो बता सके की हम केसे जीत कर आए हमने जीत के लिए कितना खर्च किया और वो पैसा कहाँ से आया
छोरिये एस सच का सामना कोई नही करना चाहेगा .अपने मुद्दे पर लोटते है की सच का सामना वास्तव मै सच के लिए किया जा रहा है या उस जीत की राशिः के लिए .यदि पैसों के लिए नही है तो क्या सच के लिए आज हम लोगों को एक टी.वी .प्रोग्राम की आवश्कता है .हम किन लोगों को आपना सच बताना चाह रहे है जो टी आर पी के लिए हामरे समाज मै पश्चीमी सव्यता का नंगा रूप लाकर हमे ये सिखा रहे है की हम जहाँ रहते है वह गाय को भी माता का दर्जा दिया जाता है .हम ये क्यों भूल जाते है की गाँधी जी कहा था की अकेले मै बेठकर किया गया पश्चाताप भी एक सच है और हमे सच बोलना ही है तो हम सीधे ही बोल सकते है माध्यम की क्या जरूरत .सवाल मिडिया पर भी उठने लगा है क्या प्रेश की आजादी पर फ़िर विचार करने की जरुरत है हम चोथे स्तम्भ पर पावंदी के पक्छ मै नै लेकिन मिडिया को भी अपनी भूमिका को तय करना होगा .कुछ सच ऐसेहोते है जो सामने न आने पर ही अच्छे लगते है क्या koee yah चाहेगा की कुछ कीमत पर यह पता चल जाए की उसकी बीबी का किसी से ............था और पता चल भी जाएगा तो कभी उस वो भरोसा कर पाएगा .प्रोग्राम तो जितना विवादाश्पद होगा उसे उतने ही लोग देखेंगे क्योंकि इन्शानी फितरत है दूसरों की जिन्दगी में झाकना और यही चेनल की सफलता है वो जायदा विज़ापन ला सकेगा और हम आप को नंगा कर सकेगा.